Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Jul 2022 · 1 min read

श्रीमती का उलाहना

मेरी कविताओं को देख,
श्रीमती का उलाहना है,
सारे भाव ख्वाबों में आते,
मुझे देख न कुछ आता है;
मैं कहता हूंँ दिल में भाव,
तुम्हें देख उमड़ता है,
“हेतु-हेतु मद् भूतकाल’
का सारा उदाहरण बनता है;
तुम अगर लैला होती,
तो मैं मजनूं पैदा होता,
और यदि तुम रांँझा होती
तो हीर बन पैदा लेता;
मर्लिन मुनरो या होती मधुबाला,
तो मेरी बस्ती होती मधुशाला,
या होती नरगिस-सुरैया,
तो करता मैं ता-ता थैया;
पर जो भी हो,
तुम लाजवाब हो,
मेरी कविता
की ख्वाब हो,
जब भी देखूंँ तेरी ओर,
तुम सूर्ख लाल गुलाब हो।

मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)

10 Likes · 13 Comments · 510 Views
Books from डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
View all

You may also like these posts

"बताया नहीं"
Dr. Kishan tandon kranti
दिन में तुम्हें समय नहीं मिलता,
दिन में तुम्हें समय नहीं मिलता,
Dr. Man Mohan Krishna
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
"स्वार्थी रिश्ते"
Ekta chitrangini
हवा से भरे
हवा से भरे
हिमांशु Kulshrestha
बाढ़
बाढ़
Dr.Pratibha Prakash
इस बुझी हुई राख में तमाम राज बाकी है
इस बुझी हुई राख में तमाम राज बाकी है
डॉ. दीपक बवेजा
नया सूरज
नया सूरज
Ghanshyam Poddar
बच्चे बड़े होते जा रहे हैं ....
बच्चे बड़े होते जा रहे हैं ....
MUSKAAN YADAV
मुक्तक ....
मुक्तक ....
Neelofar Khan
यह देख मेरा मन तड़प उठा ...
यह देख मेरा मन तड़प उठा ...
Sunil Suman
खालीपन
खालीपन
करन ''केसरा''
#स्वागतम
#स्वागतम
*प्रणय*
गीत- बहुत गर्मी लिए रुत है...
गीत- बहुत गर्मी लिए रुत है...
आर.एस. 'प्रीतम'
बहार का इंतजार
बहार का इंतजार
ओनिका सेतिया 'अनु '
साजन तुम आ जाना...
साजन तुम आ जाना...
डॉ.सीमा अग्रवाल
युवा
युवा
Vivek saswat Shukla
आखिरी खत
आखिरी खत
Kaviraag
बढ़ी शय है मुहब्बत
बढ़ी शय है मुहब्बत
shabina. Naaz
2731.*पूर्णिका*
2731.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
क्या शर्म
क्या शर्म
Kunal Kanth
तेरी आमद में पूरी जिंदगी तवाफ करु ।
तेरी आमद में पूरी जिंदगी तवाफ करु ।
Phool gufran
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
Rj Anand Prajapati
कोई हंस रहा है कोई रो रहा है 【निर्गुण भजन】
कोई हंस रहा है कोई रो रहा है 【निर्गुण भजन】
Khaimsingh Saini
*तुम  हुए ना हमारे*
*तुम हुए ना हमारे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
परोपकार!
परोपकार!
Acharya Rama Nand Mandal
समय
समय
Paras Nath Jha
जेठ कि भरी दोपहरी
जेठ कि भरी दोपहरी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
बारम्बार प्रणाम
बारम्बार प्रणाम
Pratibha Pandey
समस्याओं से भागना कायरता है
समस्याओं से भागना कायरता है
Sonam Puneet Dubey
Loading...