श्रीभगवान बव्वा के दोहे
मेरे दस दोहे
जो जन करते हैं नहीं, अपनों पर विश्वास ।
कुचले जाते हैं सदा, राह उगी जो घास ।1।
दिल में गांठ न राखिए, कर देती है नाश ।
जिसके मन में पाप वो, चलती फिरती लाश ।2।
भ्रम बिमारी है बुरी, किजिए सदा बचाव ।
खाक बना दें फूंक के, बिना आग बिन ताव ।3।
हीना जिनका होंसला, और हीन विश्वास ।
ऐसे लोगों से बचो, बनें समय के दास ।4।
घड़ी कठिन से भागते, चाहते जो विश्राम ।
उनके जीवन में सदा, रहती दुःख की शाम ।5।
साथ रहें सच के सदा, बस वे ही बलवान ।
ढुलमुल जिनकी नीति है,समझो हैं शमशान ।6।
अंकुर उसमें फूटते, जिनकी जड़ में जान ।
बाकी को रहना सदा, सूखा औ वीरान ।7।
कुदरत भी है खेलती, कभी कभी यह खेल ।
सांप नेवले का हुआ, हमने देखा मेल ।8।
जीना पड़ता है मगर, नहीं मज़े की बात ।
दिन में भी देखो यहां, हो जाती है रात ।9।
ऐसा कर दो रामजी, बदले अब यह दौर ।
सबको मुस्कानें मिले, खुशियां हों चहुंओर ।10।
-श्रीभगवान बव्वा