श्रीकृष्ण
_लघुकथा _
श्रीकृष्ण
*अनिल शूर आज़ाद
मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उतीर्ण करते ही युवक श्रीकृष्ण नन्दगांव छोड़कर महानगर मथुरा पहुंच गए।
वर्ष बीतते गए। इस बीच गांव में बिताए वर्ष तथा गोपियों की पुलकित कर देने वाली अनेकानेक यादें, श्रीकृष्ण के अन्तस् में लगातार ताज़ा बनी रही। मन बहुत बेचैन हुआ तो एक दिन, अपने बालसखा उद्धव को गोपियों की खैरियत जानने के लिए नन्दगांव भेजा..विश्वास था कि भावविहल विरह की मारी गोपियां, उद्धव को घेरकर श्रीकृष्ण बाबत प्रश्नों की झड़ी लगा देंगी।
लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ।
उद्धव ने लौटकर ख़बर दी कि.. एक एक कर सब गोपियां..विवाहोपरांत अपने ससुराल जा चुकी हैं।
अपना श्रीकृष्ण शहर में अभी भी..क्लर्की कर रहा है..
(रचनाकाल : वर्ष1991)