!! श्रीकृष्ण बालचरितम !!
देख यशोदा तेरे कान्हा ने मिट्टी खाई।
गोपियों ने जाकर बताई।
कान्हा तूने मिट्टी खाई ।
कहकर यशोदा ने आवाज लगाई।
बांध दिया जिन्हे ओंखल में।
जब कान्हा ने मुंह खोला तो।
थी उसमे सारी सृष्टि समाई।
रंगकर श्रीकृष्ण रंग में।
हो गई वो बावली।
कान्हा की मनमोहनी सूरत थी सांवली।
आय हाय मर जावा लल्ला के मुखड़े ने त्रिलोक के मन को मोह ली।
खेले राधा रंग बरसाने में होली।
गोपियों के संग करते ठिठोली।
जो कान्हा ने मटकी फोड़ी।
यशोदा ने चांद वाणी बोली।
लल्ला तू क्यूं नही खाता दही माखन अपने घर में।
तोतले आवाज में बोले कान्हा मईया चोरी के माखन में मजा आली।
तेरी बंशी के धुन से कान्हा।
पूरा गोकुल,मथुरा,वृंदावन हर्षित है।
गईया चराए ग्वाल बाल जो।
तुम्हारे प्रति समर्पित हैं।
हे! कान्हा हम क्या तुमसे तो पूरा ब्रह्माण्ड परिचित है।
जमुना किनारे कान्हा जब थे बंशी बजाते।
जिसको सुनने स्वर्ग से देववृंद थे आते।
उस गिरिधर गोपाल को।
वृंदावन बिहारीलाल को।
हम सब शीश नवाते।
यशोदा तेरा लल्ला बहुत सताएं।
घुस के घर में चोरों की भांति माखन रोज चुराएं।
यशोदा तेरा लल्ला बहुत हंसाए।
हम सारी गोपियों के मन को भाए।
मधुमय वाणी बंशी पाणी।
कान्हा तेरी सूरत सांवली।
है लडडू गोपाल।
जाने न देता किसी को अपने दर से खाली।
हे! गिरिधर गोपाल तुम्ही हो जग के पालनहारी।
यशोदा तेरा लल्ला बहुत सयानों।
कहती जो बात है गोपी।
बात न उनकी मानो।
यशोदा तेरा लल्ला बहुत सयानो।
है बड़ा भोला चांद सा सलोना।
तोतली बात है उसकी भानों।
यशोदा तेरा लल्ला बहुत सयानों।
RJ Anand prajapati