श्रीकृष्ण की व्यथा….!!!!
श्रीकृष्ण की एक अलौकिक कथा सुनाते हैं…
कैसा रहा था उनका जीवन उनकी व्यथा बताते हैं।।
वेकुंठनाथ, आदिदेव जो अनंत थे…
जन्म से पूर्व भी पीड़ा दर्द जीवंत थे,
प्रारब्ध के गर्भ में जो पल रहा, उसे जानकर भी निश्चिंत थे।।
श्राप के कारण श्रीराधा से वियोग सहने को थे मजबूर…
फिर अंधेर रात में मथुरा नगरी की काल कोठरी में हुआ जन्म, जहां बैठा था वो कंस क्रूर।।
देवकी वासुदेव थे जन्मदाता…
यशोदा नन्द बने पालनकर्ता।।
वो गोकुल का ग्वाला था…
यशोदा का लल्ला, गोपियों का कृष्ण कन्हैया बड़ा ही मतवाला था।।
कनिष्क से उठाया गोवर्धन…
नाग कालिया पर किया मर्दन।।
झेला था इंद्रदेव का प्रकोप…
माखन खाते सभी सखा किंतु लगे मात्र कान्हा पर आरोप।।
पूतनावध वा बकासुर का संघार किया…
उस कमलनयन वाले पर विपत्तियों ने प्रहार किया।।
हुए रिहा माता पिता कंस वध के पश्चात…
फ़िर शुरू हुआ प्रकृति का क्रूर आघात।।
गोकुल त्यागा, फिर त्याग दिया वृन्दावन…
जहां नृत्य रास किया,छोड़ दिया वो निधिवन।।
मोर पंख त्यागा, बांसुरी त्यागी, बन गया सुदर्शनचक्रधारी…
असनहीय श्राप दिया था जिसने, वो थी माता गांधारी।।
फ़िर द्वारिकाधीश बनने का एक नया अध्याय शुरू हुआ…
महाभारत में गीता ज्ञान देने वाला वो ही जगत पिता गुरु हुआ।।
छिड़ गया था जब महाभारत का संग्राम…
हस्तिनापुर गया शांतिदूत बनकर केवल मांगने पांच ग्राम।।
वो श्यामल रंग का मनमोहना था एक अवतार…
महाभारत में अर्जुन समक्ष रूप किया जिसने विस्तार।।
मित्रता का नाम हैं हमारे कृष्ण सुदामा…
अमरत्व का श्राप दिया था जिसको वो था अश्वत्थामा।।
जरासंध, शिशुपाल को मृत्यु द्वारा दिया जीवन से मोक्ष प्रदान…
बर्बरीक को दिया खाटूश्याम का वरदान।।
द्रौपदी का रोका था चीरहरण…
देखा था कर्णवध, कांटों की सय्या पर भीष्म मरण।।
वो कुरुक्षेत्र का भयावह विध्वंश देखा…
श्राप विफल न हो जाए, इसीलिए मरते हुए अपना वंश देखा।।
लगा जब विश्राम अवस्था में श्री कृष्ण को ज़रा का बाण…
ख़त्म हुआ फिर युग द्वापर, जब त्याग दिए थे श्रीकृष्ण ने प्राण।।
अनंतः समुद्र में डूब गई संपूर्ण द्वारिका…
कृष्ण से पूर्व जो नाम लिया जाता है वो ही हमारी भ्रषभानु पुत्री राधिका।।।।
– ज्योति खारी