श्राद्ध
आल्हा छंद
गजब कहानी श्राद्ध पक्ष की,पितर पूजते सारे लोग ।
खीर पुड़ी पकवान बनाते,लगा रहे नित नित नय भोग।
जिंदा में नहीं करि आरती, तर्पण द्वारा करते मेल।
कौओं को आमंत्रित करते,दुनिया देख रही यह खेल।
बेशक पूर्वज देव हमारे,सदा करें उनका सम्मान।
ध्यान हमें यह भी रखना है,जीते जी नहि हो अपमान।
श्राद्ध नाम पर भंडारे का,प्रेरक लगता नहीं विधान।
सामाजिक हो मान प्रतिष्ठा,इसी भावना में हैरान।
जिंदे में नहि करते सेवा,पूर्वज कैसे हो सतुष्ट।
बाद श्राद्ध से लाभ नहीं है,स्वर्ग गये होकर जो रुष्ट।।
धन्य वही होती संतानें,पूर्वज जेते जिन्हें अशीष।
सेवा अरु सम्मान दिया हो,चरण झुका हो जिनका शीश।
श्राद्ध पर्व की परम्परा भी,देखा देखी का ही रूप।
पास पडोसी सौ को न्यौते,दूजे बनें हजारी भूप।।
पूजन करते बड़े जोर से,ज्यों द्वार पर पितर बारात।
कुत्ते खाते खीर जलेबी,सुधरें नहीं पुत्र हालात।
अच्छा होता पितर कर्म पर,बनते जन सेवा संस्थान ।
पेड़ लगाते श्राद्ध पक्ष में,पुण्य लाभ सच्ची पहचान ।
राजेश कौरव सुमित्र