श्राद्ध
रिश्तों ने मेरा
श्राद्ध कर दिया
पर लगता है मैं जिंदा हूँ
यह कलयुग है मेरे भैया
जिंदा होकर शर्मिंदा हूँ
रिश्तों ने मेरा
श्राद्ध कर दिया
मेरे नाम की चादर ओढ़े
एक पुतला लेटा था
अंदर के हिस्से सारे
चमड़े के बाहर
चमड़ा नीचे दबा पड़ा था
रह रह कर धड़कन
धड़क रही थी
कहती थी प्रतिपल जिंदा हूँ
क्यूं नाक में रूई डाल रखे हो
एक साँस तो लेने दो मुझको
फिर मर जाऊँगा
फिर ढाँक कफन ले जाना मुझको
उस नदिया के पार
टूटे दिल के तार तार मैं जिंदा हूँ
कलयुग है मेरे भैया
होकर जिंदा शर्मिंदा हूँ
रिश्तों ने मेरा श्राद्ध कर दिया।
सुनकर गरुण पुराण और गीता
सब हर्षाये
मेरा भी तन हर्षाया
मुस्काया मन ही मन
जग की दीन दशा को देख
रिश्तों की खातिर
कुछ भी कर लो
जीते जी मर जाओगे
किन किन रिश्तेदारों से
तुम पिंडदान करवाओगे
यह कलियुग है मेरे भैया
सब करके भी पछताओगे।
मैं दस्तावेज़ों में भी मृत हूँ
नित नये गीत प्रतिपल लिखता हूँ
मेरी कविता ज़िंदा है
मैं जिंदा हूँ
रिश्तों ने मेरा श्राद्ध कर दिया।
-अनिल कुमार मिश्र,प्रकाशित