श्रम करो! रुकना नहीं है।
#श्रम_करो! रुकना नहीं है।
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भाग्य हो उन्नति सुनो विश्राम को झुकना नहीं है,
श्रम करो! रुकना नहीं है।
पंथ में पाषाण हो या कण चुभे पग रक्तरंजित,
भेद कर हर एक बाधा कर नवल तू वेध्य अर्जित।
वेदना की नीरनिधि में अब नहीं गोते लगाना,
साधना हर लक्ष्य दुष्कर मन नवल उर्जा जगाना।
भाग्य हो सन्नति सुनो! विश्राम को झुकना नहीं है,
श्रम करो! रुकना नहीं है।
बोध से हर एक बाधा ध्वस्त हो सङ्कल्प ले लो,
स्वास्थ्य भी सुखकर रहे विश्राम केवल अल्प ले लो।
फिर नवागत लक्ष्य के नित प्रण करो श्रम साध लो तुम,
हो प्रयोजन सिद्ध खातिर मन को अपने बाँध लो तुम।
भाग्य सम्मुख नति सुनो! विश्राम को झुकना नहीं है,
श्रम करो! रुकना नहीं है।
कर्म को पूजा बना लो निज हृदय यह भाव भर लो,
ठोकरों से जो मिला है सद्य ही वह घाव भर लो।
मत करो गुणगान उनका जो परिश्रम त्याग देते,
है मिला वरदान जीवन मुख वो इसके आग देते।
विधि न हो अवनति सुनो! विश्राम को झुकना नहीं है,
श्रम करो! रुकना नहीं है।
भाग्य का करके भरोसा, देख तू मत बैठ जाना,
विधि मिली उत्तम अलौकिक सोच यह मत ऐंठ जाना।
भाग्य के ही बस भरोसे आज तक जो सुप्त है वह,
सत्य ही श्रमहीन प्राणी इस जगत से लुप्त है वह।
है यही बहुमत सुनो! विश्राम को झुकना नहीं है,
श्रम करो! रुकना नहीं है।।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार