#श्रमेव जयते
डा. अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक / अरुण अतृप्त
#श्रमेव जयते
मिट्टी से हुँ आया
मिट्टी का ही जाया
दुविधाओं ने है रोका
पर सुविधाओं को खोज़ा
मार पछति मैने
भरी उडारी
बिल्कुल न घबराया
मैं , बिल्कुल न घबराया
मिट्टी से हुँ आया
मिट्टी का ही जाया
तुम कर लो अपने मन की
मैं बात करुंगा जतन की
तुम शोर्ट रुट से आना
मैं राह गहुँ वतन की
मैं राह गहुँ वतन की
पर , बिल्कुल न घबराया
मिट्टी से हुँ आया
मिट्टी का ही जाया
डर लगना स्वभाविक है
मानव माटी का पुतला है
संघर्षों का इतिहास
लिए नस नस
है इसने मगर रचाया
ये , बिल्कुल न घबराया
मिट्टी से है आया
मिट्टी का ही जाया
प्रस्तर पर लिख देगा
शिला खण्ड को फोड़
जोड तोड़ की नीति
का करके भाँडा फोड़
न इसने शीश झुकाया
न इसने शीश झुकाया
ये , बिल्कुल न घबराया
मिट्टी से है आया
मिट्टी का ही जाया
संघर्षों का इतिहास
लिए नस नस
है इसने मगर रचाया