श्रमिक
श्रमिक मिल जायेंगे
शहरों की तंग गलियों में
बजबजाती नालियों के किनारे
झुग्गियों में
चीथड़ों में लिपटे
और मिल जायेंगे
शहर की अलसायी सहर में
किसी चौराहे पर
चेहरे पर असंख्य चिंता की लकीरों
और कभी न मिटने वाली थकान के साथ
किसी की प्रतीक्षा में.
और प्रतीक्षा समाप्त नहीं होती तो
लौट जाते हैं
उन्हीं तंग, सड़ांध गलियों में
या फिर
शहरों की चौड़ी सड़कों की
विभाजक पटरियों पर
दुत्कारे जाने आशंका के बीच
रात काटने के लिए नित्य.
…
यह वही श्रमिक हैं
जो शहरों को ऊँचाइयां देते हैं
मशीनों को गति
और विकास को रफ़्तार
पर इन्हें कहाँ मयस्सर
रोटी, कपड़ा और मकान
में एक भी मुकम्मल
हाँ, मई दिवस पर मिलती है
शुभकामनाएं
चलो हम भी रस्म निभाते हैं
मई दिवस पर इन्हें
शुभकामना पठाते हैं
यह भी तो नहीं मिलती,
मर जाती है
इन्हीं की बनाई ड्राइंगरूमों में.
(1 मई, 2020)