श्रमिक के सपने
कड़ी धूप में मेहनत करता
आंखों में है उसके भी सपने,
फिर उसे वर पूरा करता ।
श्रमिक परिस्थितियों से नही डरता,
पैसों की खातिर दिन रात लगा रहता,
एक दिन की कमाई से भोजन करता,
बड़ी मुश्किल से बचा खुचा
कुछ पैसे जोड़ता ।
अपने नन्हे राजकुमार को पढ़ाऊंगा,
अपनी तरह मजदूर नहीं,,,, बल्कि
एक दिन उसे बड़ा बाबू साहब बनाऊंगा ।
तभी ठेकेदार ने उसे बुलवाया
ढंग से कार्य नहीं करते हो कहकर
नौकरी से हटाया,
रूआंसा होकर चिंता में भर आया
कल की नौकरी कहां मिलेगी?
इस बात से परेशान,,,,
सेठ के पास आया
हाथ जोड़ कुछ कहने का साहस जुटाया।
साहब,ऐसा नहीं करो!!
कल से जी-जान लगा दूंगा
कहो तो अपनी सांस भी अपने
कर्मो में अर्पण कर दूंगा।
आज जरा तबियत थी खराब
इसलिए किया तनिक विश्राम ।
सहज मुझे नहीं मिलेंगी नौकरी
फिर कैसे चलेगी मेरी रोजी-रोटी,
डबडबाई आंखें,दया कीजिए मेरे सरकार
बड़ी मुश्किल से माने ठेकेदार
चलो,आज तो माफ़ किया,,
कल से ध्यान रखना।
सुन कर श्रमिक प्रसन्न हुआ
मानों डूबते को तिनके का सहारा मिला
हिम्मत हौंसला बुलंद कर
अपने काम में फिर लग गया
था पसीने से तर-बतर,
और तैरनै लगी खुशी थी अंदर
सपनों का फिर से भरने लगा समंदर।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान में