*”श्रद्धा विश्वास रुपिणौ'”*
“श्रद्धा विश्वास रुपिणौ'”
गुरुर ब्रम्हा गुरुः विष्णु ,गुरुदेवो महेश्वरः ,
गुरुः साक्षात परमं ब्रम्हा तस्मै श्री गुरुवे नमः।
गुरु प्रत्यक्ष रूप से प्रमाण लिए नारायण का ही स्वरूप है जो हमारी समस्याओं का निदान ,मन के विचारों को शुद्ध करने के लिए गुरु का ज्ञान नितांत आवश्यक है।
ब्रम्हा जी के चार मुख होते हैं और विष्णु जी की चार भुजाएँ होती है और शिवजी के तीन नेत्र धारी होते हैं। अर्थात सभी को मिलाकर ग्यारह तत्व होते हैं उसी तरह से गुरू में भी ग्यारह तत्व होने चाहिए।
चार प्रमुख तत्व ;-
1.वरद – वरद का अर्थ वरदान देने वाला
जब भी गुरू शिष्य का मेल होता है तो गुरु अपने आशीर्वाद वचनों से वरदान देता है जो जीवन में फलित होता है और वह वरदान हमेशा सिद्ध होता है जब गुरु के बताए गए मार्गदर्शन पर चलकर शिष्य उनके आदर्शों का पालन करता है।
2. अभ्यत ;- अभ्यत अर्थात अभय याने भय को दूर कर देता है मन मे चल रहे विचारों से भय उत्पन्न हो जाता है उसका निवारण कर मंत्र जप शक्ति से चेतना जागृत हो जाती है और भय समाप्त हो अभय का वरदान प्राप्त हो जाता है।
3.सुखद ; – गुरू का मार्गदर्शन मिलने से ही सुखद अनुभव मिलने लगता है दुःख दूर कर सुख प्रदान करता है।
राजा दशरथ जी का बुढापा आ गया था लेकिन उनकी कोई संतान सुख की प्राप्ति नही हुई थी वे दुःखी थे अपने गुरू वशिष्ठ जी के पास समाधान पूछने गए उन्होंने यज्ञ करवाने का आदेश दिया और उस यज्ञ की समाप्ति पर जो प्रसादी दी गई थी वही उनके दुःख को दूर कर सुखद अनुभति प्राप्त हुई आखिरकार उनके चार पुत्र – राम ,लक्ष्मण ,भरत ,शत्रुघ्न सुखद अनुभव सुख देने वाले हुए।
4.सुभध ; – जब हम जीवन में विश्वास करते हैं तो अच्छा लगता है।
गुरु के वचनों से दीक्षा ग्रहण करने के बाद ही मन के सारे संदेह दूर हो जाते हैं और जीवन सफलता की ओर अग्रसर हो जाता है।
जीवन में गुरु के ज्ञान के बिना व्यक्तित्व का विकास संभव नहीं है। ज्ञान के द्वारा ही सुंदर प्रारूप तैयार किया जाता है जो सही समय चारों दिशाओं में प्रभावित करता है।
गुरू के ज्ञान से ही हरेक कार्य के प्रति जागरूकता आती है।गुरू दीक्षा ग्रहण करने के बाद ही भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का सामना कर नेक इंसान बन कामयाबी हासिल की जा सकती है।
गुरू दीक्षा ग्रहण करने के बाद उनके दिये गए वचनों का पालन करना उनके बताए गए आदर्श बातों को अमल करना ही महान कार्य है।वरना सब व्यर्थ हो जाता है गुरू ही हमें गोविंद तक मिलाने का सत्मार्ग दिखलाते हैं। गुरू के बताए गए उन नियमों आदर्शों का पालन करना ही हमारा कर्त्तव्य है।
*”भवानी शंकरौ वन्दे ,श्रद्धा विश्वास रुपिणौ,
याभ्यां बिना न पश्यन्ति, सिद्धा स्वनतस्थमीश्ररं”
अर्थात श्रद्धा न हो तो मनुष्य किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकता है उसे आत्मिक सुख शांति भी नही मिल सकती है जिन गुणों के आधार पर आध्यात्मिक उन्नति सफलता प्राप्त होती है वो श्रद्धा के कारण ही निर्भर करता है और श्रद्धा के साथ साथ विश्वास का होना भी अत्यंत आवश्यक है।
श्रद्धा व विश्वास के बिना सिद्धजन अपने अंतःकरण में विधमान ईश्वर को कभी नहीं देख सकते हैं।
हम चाहे कितनी भी पूजा अर्चना आराधना अच्छे कर्म कर लें परन्तु फिर भी हम अपने जीवन में समस्याओं से घिरे ही रहते हैं आखिर क्यों ….?
इसका मुख्य कारण यही है कि हम किसी के प्रति श्रद्धा व विश्वास से ही दुनिया में विजयी हो सकते हैं सफलता हासिल कर सकते हैं।
उचित मार्गदर्शन अपने व्यक्तित्व का निर्माण गुरू के बिना असंभव है।
गुरु की महिमा का गुणगान सूक्ष्म प्रक्रिया है जो मध्यम गति से ही आगे बढ़ते हुए अपना प्रभाव दिखलाती है।
कुछ बातें हम सभी जानते हुए भी मूक बधिर दर्शक बन जाते हैं क्योंकि श्रद्धा व विश्वास के साथ ही ये पूर्णतः सिद्ध फलदायी होता है और जैसा कर्म करेंगे वैसा ही श्रद्धा रूपी विश्वास फल हमें अपने जीवन में प्राप्त हो सफल बनाता है।
शशिकला व्यास शिल्पी✍️