श्रद्धा और विश्वास: समझने के सरल तरीके। रविकेश झा।
नमस्कार दोस्तों आज बात कर रहे हैं श्रद्धा और विश्वास क्या है दोनों में क्या अंतर है दोनों को कैसे जाने कैसे हम श्रद्धा के साथ विश्वास के तरफ बढ़े। हम प्रतिदिन जीवन में भूल तो करते ही हैं और स्वयं को ठीक करने के लिए विश्वास भी करते हैं, हम भगवान के साथ श्रद्धा में भी जीते हैं किसी व्यक्ति में भी हम श्रद्धा करते हैं। विश्वास थोड़ा दूर का सफर है उसे हम बुद्धि और हृदय को जोड़कर जो परिणाम मिलता है वो विश्वास हो सकता है। तो चलिए बात करते हैं की श्रद्धा विश्वास को कैसे जाने और कैसे जटिल प्रक्रिया को छोड़ते हुए हम सरल प्रकिया में उतरे और जीवन को निरंतर अभ्यास से जागरूक करें।
आध्यात्मिक दृष्टि से श्रद्धा विश्वास
सबसे पहले हमें ये भी जानना चाहिए की श्रद्धा विश्वास हम क्यों करते हैं? यदि हम भावनात्मक जीवन जी रहे हैं हृदय से फिर हमें श्रद्धा करना परता है, कुछ दृश्य देखे कोई भी फिर हमें मन को भाता है हम मान लेते हैं की ये कितना अच्छा है ये है श्रद्धा उसी समय हम बुद्धि वाले इंसान देखते रहते हैं तर्क से संदेह करते हैं जानते रहते हैं वो विशिष्ट रूप से स्वयं को और बाहरी दृश्य को देखते हैं। फिर उन्हें सत्य का पता चलता है वो है विश्वास। लेकिन ध्यानी कहते हैं की ये भी सत्य नहीं सत्य तो बस जानते रहने में है मानने में नहीं बिस्वास को भी खत्म करना परता है अंत में जिसे हम साक्षी भाव कहते हैं विश्वास श्रद्धा से परे है ये जानने से ही उपलब्ध होगा। मानना , जानना, होना, अतीत भविष्य वर्तमान, ये बात को समझना होगा। चलिए इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। आज श्रद्धा और विश्वास की बात करते हैं साहब।
श्रद्धा और विश्वास को समझना
आस्था और विश्वास हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमारे विचारों, कार्यों और निर्णयों को एक आकार देते हैं। इन अवधारणाओं को समझने से हमें विभिन्न चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकता है।
श्रद्धा क्या है
श्रद्धा किसी चीज़ या किसी व्यक्ति और भगवान पर गहरा भरोसा है। यह अक्सर तर्क और सबूत से परे होता है। लोग आराम और ताकत पाने के लिए आस्था पर भरोसा करते हैं। आस्था किसी उच्च शक्ति, किसी व्यवस्था या यहां तक कि स्वयं में भी हो सकता है। यह एक ऐसी भावना है जो हमें किसी चीज में पूरी तरह से समर्पित करने में मदद करती है। ओशो कहते हैं यह एक ऐसी अवस्था है जहां हम अपने तर्क और विचारों को अलग रखकर किसी चीज़ में पूरी तरह से श्रद्धा करते हैं। हम अक्सर जीवन में गलती करते रहते हैं ऐसा हमें लगता है की हम गलत करते रहे हैं और अब थोड़ा हृदय इशारा कर रहा है की थोड़ा सुधरना चाहिए उसी वक्त कोई और मिल गया और वो करुणा के तरफ जाता है चाहे उसे पता हो या न हो हम उसपर विश्वास कर लेते हैं की ये मार्ग सही होगा। यही श्रद्धा है, जानना होगा हमें तभी हम दोनों को जान सकते हैं।
विश्वास क्या है।
विश्वास इस बात को स्वीकार करना है की कोई चीज़ सच है या मौजूद है। श्रद्धा के विपरित, विश्वास आमतौर पर सबूत या तर्क संदेह पर निर्धारित होता है। विश्वास वैज्ञानिक तथ्यों से लेकर व्यक्तिगत राय तक किसिंभी चीज के बारे में हो सकती है। विश्वास हमारे विश्वदृष्टिकोण को आकार देते हैं। वे इस बात को प्रभावित करती हैं कि हम दुनिया को कैसे देखते हैं और उससे कैसे बातचीत करते हैं। दृढ़ विश्वास लोगों को अपने लक्ष्य हासिल करने और बाधाओं को दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन आपको संदेह करना होगा, आसानी से नहीं होगा, क्योंकि जो दिखेगा ही नहीं वो आप कैसे जानोगे, कैसे विश्वास करोगे, उसके लिए हमें जागरूकता लाना होगा श्रद्धा तो तुरंत हो सकता है कोई बोलेगा की हम करुणा करते हैं आप को भी करना चाहिए, आप कह सकते हैं क्यों करे वो भी तो कामना है किसी और के लिए कामना है, करुणा से क्या होगा, इसका क्या भरोसा है की भगवान हमें कुछ देंगे और वो सुख ही क्या होगा जो जीते जी न मिले मरने के बाद कौन देखा है। आप संदेह कर सकते हैं। संदेह करना चाहिए स्वयं में भी करना चाहिए। तभी हम श्रद्धा और संदेह विश्वास को जान सकते हैं और एक हो सकते है।
ओशो कहते हैं विश्वास एक ऐसी अवस्था है जहां हम किसी चीज़ में पूरी तरह से निष्ठावान होते हैं। यह एक ऐसी भावना है जो हमें किसी चीज के प्रति पूरी तरह से समर्पित करने में मदद करती है। विश्वास एक अधिक तर्कसंगत और बुद्धिमत्तापूर्ण है।
आस्था और विश्वास के बीच अंतर।
जबकि आस्था और विश्वास संबंधित हैं, लेकिन ये समान नही हैं। आस्था में अक्सर एक गहरा भावनात्मक संबध शामिल होता है। इसके लिए हमेशा सबूत की आवश्यकता नहीं होती है। दूसरी ओर विश्वास आमतौर पर किसी न किसी तरह के सबूत या तर्क पर आधारित होता है।
उदाहरण के लिए, किसी को नकारात्मक समाचारों के बाबजूद मानवता की अच्छाई पर विश्वाश हो सकता है। इधर कोई अन्य व्यक्ति वैज्ञानिक डेटा के कारण जलवायु परिवर्तन पर विश्वास कर सकता है। एक आस्था है जो हमें मानना ही होता है एक है विश्वास जो जानने से होता है। जानने से आप विश्वास के तरफ बढ़ सकते हैं और मानने से श्रद्धा के तरफ। बुद्धि संदेह के बाद विश्वास करेगा आस्था देखते ही लिप्त हो जायेगा।
श्रद्धा और विश्वास को कैसे विकसित करें।
आस्था और विश्वास विकसित करना एक व्यक्तिगत यात्रा हो सकता है। यहां मदद करने के लिए कुछ कदम।
अपने मूल्यों और आपके लिए क्या मायने रखता हे, इस पर चिंतन करें ऐसी अनुभवों की तलाश करें जो आपके मूल्यों के अनुरूप हों। अपने आस पास सहायक लोगों से बात करें उनको पास रखें। अपनी आंतरिक शांति को मजबूत करने के लिए Mindfulness Meditation का अभ्यास करें। यह कदम आपको आस्था और विश्वास की एक मजबूत नींव बनाने में मदद कर सकता हैं। वे आपको जीवन के उतार-चढ़ाव के दौरान मार्गदर्शन कर सकते हैं।
निष्कर्ष
आस्था और विश्वास को समझना आपके जीवन को समृद्ध कर सकता है। वे उद्देश्य और दिशा की भावना प्रदान करते हैं। इन गुणों को विकसित करके, आप चुनौतियों का सामना दृढ़ता और आशा के साथ कर सकते हैं।
याद रखें, आस्था और विश्वास व्यक्तिगत हैं। वे हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोको क्या पसंद है और आपको आगे बढ़ने में मदद करता है।
सुझाव
हमें एक बात और ध्यान में रखना है की हमें जागरूकता और ध्यान को मित्र बनना ही होगा। जागरूक होना होगा। संदेह करना होगा तभी हम ऊपर उठ सकते हैं स्वयं के अंदर जो संभावना है वो और सृजन हो सकता है। परमात्मा की खोज तो हो ही जायेगा बस हमें पहले स्वयं को खोजना है ताकि हम जाग सके, और निरंतर प्रेम ध्यान जागरूकता के राह पर चलते रहे। जागरूक होकर हम सब कुछ करने में सक्षम हों सकते हैं।
हमें बस जागना है, आंख खोलकर देखना होगा, वर्तमान में स्वयं को लाना होगा ताकि वर्तमान का की भी स्वाद चखा जाएं, और परमात्मा का दर्शन कर सके। पहले स्वयं की खोज करें फिर आप सब कुछ जानने में समर्थ हो जाओगे और खिलते रहोगे, आनंदित होते रहोगे।
धन्यवाद।
रविकेश झा।🙏🏻❤️