श्रद्धाञ्जलि
चिर शांति में सोते हो तुम
जग की कुटिलताओं से होके दूर,
माना तुम हो गए निःशब्द
इन पंचतत्वों में हो विलीन,
पर इस जीव लोक में सभी जीव
नीरव, उत्प्लव के मध्य ।
आत्माएं नित लुप्त हो रहीं
मनुज की देह से;
बाहर जितना प्रकाश पुञ्ज
अंतर में उतना अंधकार गहन ।
ईर्ष्या और दहशत भरी सब हृदय में
ना जाने कौन कब किसकी
दे बलि निज स्वार्थ में ।
कितने ही स्वप्न सजाये होंगे तुमने
उन अपूर्णताओं के बीच तुम
आज खो गए अनन्त में ।