श्रद्धांजलि पुलवामा ?
हिमालय की पावन भूमि
देवी मां चित्कार उठीं
वीर सपूतों के रुधिर
से आज फिर रक्ताभ हुईं
धरनी कांपी अंबर रोया
हर ओर हाहाकार मचा
जब मातृ भूमि के वीरों ने
शत्रु के घात से प्राण गंवाया
सिंदूरी आभा खो गई
उजड़ गई मां की कोख
टूट गई पिता की लाठी
संतानें अनाथ हो गईं
गुलशन वीरान हो गए
सुमन खिलने से डर गईं
नित दिन रक्त से क्रीड़ा
सहन नहीं होती अब पीड़ा
सहज सुलभ मुस्काएं
महक उठें कुसुमी वादियां
खिल जाएं केसर की कलियां
सौंदर्य ,लालित्य फिर पा जाएं