श्याम विरह
दोहा-गजल
श्याम विरह-
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प्रिय मुझको विसराय के, चले देश की ओर।
विरह मुझे ऐसा मिला,कहीं ओर नहि छोर।।
घर-आँगन सूना लगे,तीखे से हर बोल,
नैना नित बरसत रहें,नाचे नहि मन मोर।
तन -मन की अब सुधि नहीं,रहा तनिक नहि चेत,
बसते तुम नित खाब में,होती भाव विभोर।
सखियाँ देत उलाहना,जग को दी विसराय,
श्याम सलोने रूप पर ,मैं जो हुई चकोर।
आने को परसो कहे, बरस रहे अब बीत,
बदले में ऊधो यहाँ,बँधे प्रेम की डोर।
**माया शर्मा,पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)**