शोहरत का ज़रिया नहीं बनती
शोहरत का ज़रिया नहीं बनती
ग़रीबी कभी सुर्ख़ियाँ नहीं बनती
सबको साथ लेकर चलना पड़ता है
एक आदमी से दुनिया नहीं बनती
ग़र गिले शिकवे हल कर लिए जाएँ
दिलों के दरमियाँ दूरियाँ नहीं बनतीं
आख़िर ऐसे घर में जाके रहना है ‘अर्श’
जिसमें कभी खिड़कियाँ नहीं बनती