शोध की किताब
16• शोध की किताब
मुकुल जोशी ‘वृद्धों की बेरोजगारी ‘ पर कोई महत्वपूर्ण
शोध कर रहे थे।शोध छात्रों को ढेर सारी पुस्तकें संदर्भ हेतु
वांछित होती हैं ।उन्हें कुछ किताबें अपनी पुस्तकालय में भी नहीं मिलीं।पुस्तक बाजार की ओर रुख किए ।कई दुकानें छानने के बाद एक अर्नोल्ड जर्कर की Dictionary of Economics की पुस्तक छोड़ बाकी सभी पुस्तकें मिल गईं।अब उस एक के लिए जोशी जी बहुत परेशान थे।कुछ पुरानी पुस्तक विक्रेताओं की ओर पहुंचे। उन्हीं पुरानी पुस्तकों की दुकानों के पास ही फुटपाथ पर कुछ किताबें अखबार पर बिछी पड़ी दिखीं । संयोगवश उनमें से एक अर्नोल्ड जर्कर की लिखी ‘डिक्शनरी आफ इकोनोमिक्स ‘ भी थी। बहुत प्रसन्न हुए ।
विक्रेता एक वृद्ध व्यक्ति काफी चिंतित मुद्रा में नीचे बैठा था,दाढ़ी काफी बढ़ी हुई थी । उससे कीमत पूछे। वृद्ध ने बेहद धीमी आवाज़ में कहा जो उचित समझें, दे दें।
अचानक उस व्यक्ति के पीछे पार्क की दीवार पर लटका एक पोस्टर उन्हें दिखा जिसपर हाथ से मोटे अक्षरों में लिखा था ,”मैं भूखा हूँ, कोई काम नहीं, सिर्फ किताबें मेरे पास बची हैं। आपके काम की हों तो ले जाएं ।कीमत जो चाहे दे दें।” जोशी जी कुछ पल के लिए अवाक् रह गए। पूछने पर पता चला कि वृद्ध के साथ परिवार का कोई नहीं है, अपने खाली घर के सिवा ।जोशी जी ने एक हजार रुपये उस समय किताब का दिया और वृद्ध के लिए शीघ्र ही कोई समाधान निकालने का आश्वासन देकर चले गए ।
**********राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ,24/05/21*********