शोखी इश्क (ग़ज़ल)
वो शोखी इश्क को हम इस तरह से आजमाते हैं
कभी नखरे दिखाते हैं, कभी उनको सताते हैं
हमारी तो ये आदत है,नज़ाकत है ,शरारत है
मुहब्बत यूं समझना मत अगर हम मुस्कुराते हैं
वसा,प्रोटीन शायद ये विटामिन भी बहुत होंगे
तभी यारों जिसे देखो वहीं अब भाव खाते हैं
बड़े ही होशियारी से, मेरे मासूम दिल से सब
खिलौना है समझ कर,मुस्कुरा कर खेल जाते हैं
सियासत के इशारों पे, लड़ेंगे क्यों मरेंगे क्यों ?
चलो आओ दिलों की फैसले मिलकर मिटाते हैं
ज़माना कुछ ऐसा है खेलने की उम्र में बच्चें
अरे देखो सड़क पर बेधड़क लड़की घुमाते हैं
ज़माने में यकीं दुष्यंत अब किसपे करोगे तुम ?
जहां अपने करीबी ही चुना अक्सर लगाते हैं
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल