शोख़ नज़रों में हाय मैख़ाना लिए फिरता है
शोख़ नज़रों में हाय मैख़ाना लिए फिरता है
फिर भी हर दिल ख़ाली पैमाना लिये फिरता है
दिल की शमाँ जले गर तू निगाह भर के देख ले
आँखों में कितना नशा परवाना लिये फिरता है
अपनों की पहचान उलफत से होती है वर्ना
मोहब्बत कहाँ कोई बेगाना लिये फिरता है
तेरे लबों पर आकर हर बात ग़ज़ल लगती है
वरना कितना ही लफ्ज़ ज़माना लिये फिरता है
तू मुस्कुराए तो दिल मेरा फूल सा खिल जाय
कितनी तरहा के फूल हर दीवाना लिये फिरता है
बेचैन है मेरी ख़बर को बेक़रार दीद को
मेरे लिए कसक़ क्यूँ अंजाना लिये फिरता है
परिंदे की परवाज़ को मालूम ही ना था ‘सरु’
कौन ज़ॅलिम हाय उस पर निशाना लिये फिरता है