शोक संवेदना
ये वीभत्स दृश्य हृदय विदीर्ण कर जाता है ,
मुझे हर किसी में कोई अपना सा प्रतीत होता है ,
एक मां जिसने अपने लाडले बेटे को खोया है ,
एक बाप जो अपने होनहार प्यारे बेटे को खोकर रोया है ,
एक भाई जिसने अपने दाहिने हाथ रूपी भाई को गंवाया है ,
एक बहन जिसने अपने प्रिय भाई से बिछड़ कर अपार दुःख पाया है ,
एक अर्धांगिनी जिसका जीवन अपना सुहाग गवां अंधकारमय हो गया है ,
एक दोस्त का प्रिय दोस्त उसे छोड़ उसे जीवन भर का दुःख दे गया है ,
इस तरह किसी ने अपनी माता , किसी ने अपने पिता , किसी ने अपनी पत्नी , किसी ने अपनी बहन ,
किसी ने अपने ही किसी प्रियजन को खोया है ,
इस तरह काल के इस कराल गाल में समाने का चक्र
चल रहा है ,
अपने प्रियजनों के असमय अवसान से मानव स्तब्ध किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह गया है ,
क्या यह नियति का निर्मम प्रहार है ?
जो समस्त मानव जाति को दंडित कर रहा है ,
या स्वयं के बनाए कुचक्र में मानव फंसकर ,
अपने द्वारा किए पाप का भोगी बन गया है ?
या कलयुग में विनाश लीला अवधारणा का प्रत्यक्ष दृश्य है ?
जिसके यथार्थ में पाप की पराकाष्ठा में ईश्वर द्वारा मानव धर्म पुनर्स्थापना का सत्य है ?