हम किसी का वाह्य स्वरूप ही देख पाते...
स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडेय निर्झर की पुस्तक 'सुरसरि गंगे
सुनो! पुरूष होने का ताना तो जग देता है
Pyaaar likhun ya naam likhun,
कल है हमारा
singh kunwar sarvendra vikram
मैं अगर आग में चूल्हे की यूँ जल सकती हूँ
आंधियों में गुलशन पे ,जुल्मतों का साया है ,
बह्र-2122 1212 22 फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन काफ़िया -ऐ रदीफ़ -हैं
नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
ना मुझे मुक़द्दर पर था भरोसा, ना ही तक़दीर पे विश्वास।
52.....रज्ज़ मुसम्मन मतवी मख़बोन