प्रेम पत्र जब लिखा ,जो मन में था सब लिखा।
दया समता समर्पण त्याग के आदर्श रघुनंदन।
बना रही थी संवेदनशील मुझे
मन की पीड़ाओं का साथ निभाए कौन
स्नेहों की छाया में रहकर ,नयन छलक ही जाते हैं !
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
जब कभी तुमसे इश्क़-ए-इज़हार की बात आएगी,
रोहित एवं सौम्या के विवाह पर सेहरा (विवाह गीत)
चलो जिंदगी का कारवां ले चलें
यदि आपके पास नकारात्मक प्रकृति और प्रवृत्ति के लोग हैं तो उन
कभी अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर ,