मुक्तक
देश के जो भी ——-परस्तार बने बैठे हैं
ये फ़क़त कुर्सी —-के दिलदार बने बैठे हैं
धर्म की आँड़ में हम सबको लड़ाते हैं जो
मेरी नज़रों में ———वो ग़द्दार बने बैठे है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
देश के जो भी ——-परस्तार बने बैठे हैं
ये फ़क़त कुर्सी —-के दिलदार बने बैठे हैं
धर्म की आँड़ में हम सबको लड़ाते हैं जो
मेरी नज़रों में ———वो ग़द्दार बने बैठे है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)