शेर
मौत जो मांगी तो न आई तमाम उम्र
जीने की तमन्ना है तो आई गले लगने।
ख़ुद आया तेरे दर पे
तो तूने भिखारी समझा
अब तू भी बुलायेगा तो
न आएंगे कभी हम।
मुस्कराहट जो उभरी है
तेरेओठों पे सनम
जैसे दर्द के सीप पर
थ्री हो आंसू की शबनम।
सुबह से राह तकते शाम हो गई
जिदगी सारी यूँ नाकाम हो गई
अपनी होती बात तो गिला न था
आज़माते इश्क़ भी नीलम हो गई।