ऐ हवा तू उनके लवों को छू कर आ ।
कभी बहुत होकर भी कुछ नहीं सा लगता है,
महफिलों में अब वो बात नहीं
रुसवा हुए हम सदा उसकी गलियों में,
हमारे पास एक गहरा और एक चमकदार पक्ष है,
उन माताओं-बहिनों का मंहगाई सहित GST भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता,
हो रहा अवध में इंतजार हे रघुनंदन कब आओगे।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
ग़ज़ल (थाम लोगे तुम अग़र...)
सितारों से सजी संवरी एक आशियाना खरीदा है,
**वो पागल दीवाना हो गया**
मौसम किसका गुलाम रहा है कभी
कविता जीवन का उत्सव है
Anamika Tiwari 'annpurna '
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
जब तुमने सहर्ष स्वीकारा है!
बेटी का घर बसने देती ही नहीं मां,
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'