*प्रभो हमें दो वह साहस हम, विजय दुष्ट पर पाऍं (गीत)*
तेरा लहज़ा बदल गया इतने ही दिनों में ....
कौन है जिसको यहाँ पर बेबसी अच्छी लगी
मिनख रो नही मोल, लारे दौड़ै गरत्थ रे।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
हर्षित आभा रंगों में समेट कर, फ़ाल्गुन लो फिर आया है,
यह जो कानो में खिचड़ी पकाते हो,
आ चलें हम भी, इनके हम साथ रहें
मेरा समय
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
चचा बैठे ट्रेन में [ व्यंग्य ]
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
- तस्वीर और तकलीफ में साथ अपनो में फर्क -
मीडिया, सोशल मीडिया से दूरी