*मची हैं हर तरफ ऑंसू की, हाहाकार की बातें (हिंदी गजल)*
भगवान ने जब सबको इस धरती पर समान अधिकारों का अधिकारी बनाकर भ
तथाकथित धार्मिक बोलबाला झूठ पर आधारित है
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जड़ता है सरिस बबूल के, देती संकट शूल।
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
आज अंधेरे से दोस्ती कर ली मेंने,
Ishq ke panne par naam tera likh dia,
अनपढ़ व्यक्ति से ज़्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति जातिवाद करता है आ
मंजिल-ए-मोहब्बत
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
हर किसी के पास एक जैसी ज़िंदगी की घड़ी है, फिर एक तो आराम से
पुजारी शांति के हम, जंग को भी हमने जाना है।