शेर
मोहब्बत संजीदगी से अदा की जब मैंने उनसे।
हश्र में एक पलंग मिला शहर के अस्पताल में।।
तबस्सुम उनके चेहरे का छिपाए ना छिप सका।
वो समझते हैं मोहब्बत दफन हो गई कब्रिस्तान में।।
जलवा खूबसूरती का दिखाने आये ले गुलदस्ता हाथों में।
छिड़क गए वो नमक मेरे जख्मों पर
अस्पताल में।।
इश्क में पगलाए थे हम इस कदर क्या बतलायें अब।
मरहम समझ मुस्कुरा दिए इस मोहब्बत के जंजाल में।।