शेर
मेरे जख्मों का मरहम नही है जिनके पास
मैंने जख्मों को अपने उन्हें दिखाना छोड़ दिया
जो मिला खुद से खुदा से वो कबूल कर लिया
कुछ और पाने की ख्वाहिश करना छोड़ दिया
मुझे आदत है कांटों पर चल मंज़िल पाने की
तुमने राह में फूल बिछाए मैंने रास्ता मोड़ लिया
ये जिंदगी नियामत है मेरे परवर दिगार की
मैन सारी रुसवाइयों से अपना नाता तोड़ दिया
शुक्र गुज़ार हूँ मैं तो तेरी रहमतों का ए मेरे रब
सारी हदें पार कर मैंने तुझसे रिश्ता जोड़ लिया
वीर कुमार जैन ‘अकेला’
25 सितंबर 2021