शेर
ना वो सितम, ना कोई अफसाने?
तू ना सही, कोई और भी तो है?
मेरी मकबुलियत के कद्रदान हमारे.
कौन जिता अब, तेरी जुल्फों के सहारे?
© किशन कारीगर
ना वो सितम, ना कोई अफसाने?
तू ना सही, कोई और भी तो है?
मेरी मकबुलियत के कद्रदान हमारे.
कौन जिता अब, तेरी जुल्फों के सहारे?
© किशन कारीगर