शेर
नज़रों में उसके हर रोज़ शक पनपता रहा ।
मैं उसे सच कहता रहा और उसका ये रोग बढ़ता रहा ।।
कसमें वादे उसने सब तोड़ दिए ।
मैं निभाता रहा और इल्ज़ाम लगता रहा ।।
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हाथों पर आयी वक्त की इन सिलवटों से उम्र को मत तोलिये ।
ये तजुर्बा है ज़िन्दगी का , इन के आशीर्वाद से अपनी किस्मत खोलिए
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न इंतजार करती हूँ ,न वजह की तलाश ।
जरिया तो खुद ब खुद चला आता है,
इन लबों पर हंसी को बयां करने ।