शेर ओ शायरी
बढने लगा है आज कल बाजार में सरमायादारियाॅ ,
बढने लगी है आदम कें नेह में बेइख्त्यिारियाॅ की खाईया ा
हमने देखा था उन्हे ताबीर में ,
कि वो दराजदस्त रहम दिल हो गया ा
हो गया अागाज हमारी बर्बादी का इस जहाॅ में ,
जब जहॉ मेंं तासीर से ज्यादा तु हजरत को महत्व दिया जाता हो ा
न करो शमसीर से दराजदस्ती हम पर ,
हम तो तुम्हारे अक्ष्ाि से ही बिस्मिल हुए पडे है ा
करने को था वो शख्स हमारी बर्बादी पर अातुर ,
मेहरबानी रही उस यारब की हम पर कि ,
उनके मनसुबे कामयाब न हो पाये ा
नाज था हमें अपने यारो पर कि वो ना बदलेगे मौसम की तरह,
कि जब आया हवा का एक झौका वो हमसे बिछड कर चले गये ा
अर्ज किया है कि कत्ल किया उसने मेरे अरमानो का ,
कि जिसे में अपना समझता था उसने पराया कह दिया ा
भरत कुमार गेहलोत
जालोर राज
सम्पर्क सुत्र- 7742016184