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ज़माने में बढ़ी आगे सुता खुश हो चहकती है ।
पिता की शान बढ़ती सी , बनी दौलत महकती है ।
पदों की शान होती है, किसी भी महकमें में हो,
कड़े हर फैंसले लेती,नहीं अब वो बहकती है ।
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब
गीत
ये अनजान राहे ये मंजिल पराई
मुझे जिन्दगी तूं कहा लेके आई.
किस्मत से ये आदत पाई
दिल का शीशा टूट नये घर लाई
जन्म की रिश्ता झुठ गया
साया बनके साथ चलेगी ये तन्हाई
मुझे जिन्दगी तूं कहा लेके आई.
२ आज मेरी मजबूर वफा, मेरे लिए अरमान हुई
छुट गये गीत मिलन के दर्द में शाम रही
जाने कब संगम आशा ले अनजान शहनाई
मुझे जिन्दगी तूं कहा लेके आई.
ये अनजान राहे ये मंजिल पराई
स्वरचित –रेखा मोहन २१/४/२३ पंजाब