महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
बह्र 2122 1122 1122 22 अरकान-फ़ाईलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन काफ़िया - अर रदीफ़ - की ख़ुशबू
ख़बर थी अब ख़बर भी नहीं है यहां किसी को,
ये जो अशिक्षा है, अज्ञानता है,
क्यों हमें बुनियाद होने की ग़लत-फ़हमी रही ये
" नैना हुए रतनार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
मुझे लगता था किसी रिश्ते को निभाने के लिए
कुछ अजूबे गुण होते हैं इंसान में प्रकृति प्रदत्त,
न हँस रहे हो ,ना हीं जता रहे हो दुःख
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त
दिल में कुण्ठित होती नारी
क्यों दिल पे बोझ उठाकर चलते हो
*सेवा सबकी ही करी, माँ ने जब तक जान (कुंडलिया)*
"यादें" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
लफ्जों के जाल में उलझा है दिल मेरा,