शेखर सिंह ✍️
हिंदी ग़ज़ल
मैंने सुंदर सपना देखा।
कविताओं का छपना देखा।।
हिरनी जैसी आँखें लगतीं-
औ पलकों का झपना देखा।
मानवता की बात करें क्या –
राम नाम है जपना देखा।
ताप खत्म था सर्दी में जो –
जेठ मास में तपना देखा।
जब-जब लू की बात चली है-
ज्यों सर्दी का कँपना देखा।
राशन आया बँटा नहीं है –
पर रिकार्ड में खपना देखा।