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30 Jan 2021 · 1 min read

शृंगार रस

आज हर इंसान अभिभूत है श्रृंगार रस से। पर्दे के पीछे से देख रहा आंसू रस से। जीवन का उद्देश्य भूल चुका है आलस्य से। परिश्रम का महत्व चला गया उसके जीवन रस से। बनकर गुलाम मोहिनी का रति से रिश्ता जोड़ा। काम औंध होकर जीवन को थोड़ा और मरोड़ मरोड़ा। पर समझ कर समझ ना सका श्रृंगार की सच्चाई। लिपट लिपट गया रति को देर लगाई। मादकता की पीड़ा का जरा ना सह पाई। इसको आनंद समझा इतना भर माई। अपनी ऊर्जा का उपयोग कैसे करना था। गुरु भी तुझे रोक ना सका पच पच मरना था। जिंदगी का अर्थ केवल रस सिंगार नहीं था। आत्मा को परमात्मा से मिलन का एक रास्ता बेकार नहीं था।

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 285 Views
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