‘शूल’
फूल ही नहीं शूल भी शान रखते हैं,
चुभन देते हैं पर सदा मान रखते हैं।
खाकर नमक जिसका उगते पलते हैं,
चुभकर उसे बता कब कहाँ छलते हैं।
फितरत इनकी भी अजब निराली है,
बदौलत इनके ही मरु में हरियाली है। लौह बन सहते हैं तपन तीव्र ताप की,
भीतर रखी छिपी रस-भरी प्याली है।