शूल
शूल एक कवच है
महक रहे फूलों का
शूल एक हृदय में
बेपरवाह भूलों का
मीत के प्रवास का
प्रीत के उपहास का
अधूरी-सी कहानी का
ताना भरी वाणी का
फूल है झड़े हुये
शूल बस भरे हुये
छल रही सलवटें
बदल रही करवटें
गोखरू बबूल है
पिस रहा शूल है
-©नवल किशोर सिंह