शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टकों का सफर आज प्यारा मिला
शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टकों का सफर आज प्यारा मिला।
बोझ जीवन लगे अब हमारा हमें, इश्क से आज कैसा नजारा मिला।।
सद्य कंपित अधर से नयन चूमना, स्वप्न में नित्य आना मुझे छल गया।
त्याग कर पथ प्रिये आज अनुराग का, दूर जाना तुम्हारा मुझे खल गया।।
वक्त ने आज कैसा कहर ढा दिया, फँस गई जिन्दगी न किनारा मिला।
शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टको का सफर आज प्यारा मिला।।
कष्ट होता मुखर जिन्दगी थम गई, राह में प्रीत ने अब मुझे तज दिया।
धूप तम की हृदय में बड़ी है घनी, प्यार ने यार ऐसा भला क्यों किया?
प्यार में प्यार मुझको मिला ही नहीं, दर्द उपहार ही आज न्यारा मिला।
शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टको का सफर आज प्यारा मिला।।
प्यार की नाव लाचार मझधार में, हाथ अपने नहीं एक पतवार है।
थे बने जो मसीहा वहीं छल गये, पीर बन सारथी आज असवार है।।
प्यार में अब खुशी का सफर थम गया, आसुओं का सफर ही दुबारा मिला।
शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टको का सफर आज प्यारा मिला।।
पीर पर्वत सरीखी विकल है हृदय, राह में तुच्छ काटे बिखर कर पड़े।
मृत्यु शैय्या लगे ज़िन्दगी की डगर, बीच तम की भँवर में हुये हम खड़े।।
वेदनाएं व्यथित कर रही हैं हृदय, नेह को अब नयनजल सहारा मिला।
शूल ही शूल बिखरे पड़े राह में, कण्टको का सफर आज प्यारा मिला।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’