*शूल फ़ूलों बिना बिखर जाएँगे*
शूल फ़ूलों बिना बिखर जाएँगे
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पास आकर कहीं खिसक जाएँगे,
शूल फ़ूलों बिना बिखर जाएँगे।
शोर सुनता नहीं कभी कानो में,
आन पतली गली निकल जाएँगे।
रात-दिन देखते,नहीं दिल भरता,
ख्वाब देखें बहुत बिसर जाएँगे।
खूब भीगी पलक अश्क में डूबी,
देख नीले नयन निखर जाएँगे।
रोकते – रोकते रुके पल दो पल,
हाल दिल के यहाँ बिगड़ जाएँगे।
आँख आँसू भरी सदा मनसीरत,
ताप से ही बरफ पिंघल जाएँगे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)