शूल/काँटा
बने तुम भी पहचान चमन की
चुभन नहीं शान हो गुलशन की ।
कोमल कितना साथ तुम्हारा
तुम बिन अधूरी महक सुमन की ।
तुम तपस्वी बड़े ही अडिग हो
तुमको बहुत है सहन तपन की ।
दृढ़ संकल्पी और जटिल हो
नज़रें तुम पर सभी कलियन की ।
फूल शूल का है साथ अनुपम
सँग होकर भी न आस मिलन की ।
डॉ रीता