शून्य
धधक रही हो आग अगर
बचना हो नामुमकिन जिससे
डाल रहे अब भी बहुत
तेल और घी उसमें
क्या करोगे तुम फिर
बुझाना तो है गुनाह उसको
बुझाने की बात भी की तो
गिने जाओगे विरोधियों में
एक ही चारा है पास तुम्हारे
देखकर परिस्थितियों को
जड़ होना ही श्रेयस्कर है
अब तुम शून्य हो जाओ।।