शून्य शून्य सा लगता है
शून्य शून्य सा लगता है
बिन तेरे मेरे हरदम
सावन भी पतझड़ लगता है
लोगों से मिलना जुलना भी
बेमानी सा लगता है
दो चार कदम आगे बढ़कर
ना जाने क्यूँ रुक जाता हूँ
जिस राह पर तेरा दर ना हो
जाना भी दूभर लगता है।
निर उद्देश्य सा आज तलक
मैं वन उपवन में भटका किया
पल भर भी अब तेरे बिन
जीना मुश्किल सा लगता है
आ जाओ दिलबर अब तुम बिन
सूना सूना जीवन है
अस्तित्व मेरा मुझको प्रिये
शून्य शून्य सा लगता है।
संजय श्रीवास्तव “सरल”
बालाघाट म प्र
09/02/2021