#शून्य कलिप्रतिभा रचती है
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★ #शून्य कलिप्रतिभा रचती है ★
स्वर्णमृग-सा छल करती है
चाहत तेरी हठ करती है
लौट गई थी आस की नगरी
भूखी-प्यासी फिर परती है
मिलनबिछुड़न मिलननाटिका
पोर – पोर पीर बसती है
वैद्यसयाने रोगशमनअपराधी
विधना चल चल चल कहती है
बूझबुझावन उस ओर की बातें
सागर पर्वत सच धरती है
कहीं दूर इक तारा दीखे
रैन अकेली वृथा नटती है
व्यासपीठ पर क्षुधित कामना
जयविजय महाभारत रचती है
वातायन सूने सहमे झरोखे
मनद्वारसांकल कब बजती है
पीतवर्णा हो हृदयहरीतिमा
आजकल खल करती है
दिग्दिगंत मरुत बहती है
प्राणोंभीतर प्राण कहती है
पाणिनीपद और वेद सहोदर
शून्य कलिप्रतिभा रचती है
सुरभित वीथियां नगरगाम की
अघटितकथा ज्यों नभझरती है
पंचवटी में अलखनिरंजन
कर्मगति टारे कहां टरती है
तनगलियों की भूलभुलैया
वयकुँवरि धीमे-धीमे चलती है !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२