राग द्वेश से दूर हों तन - मन रहे विशुद्ध।
लाल डब्बों से जुड़े जज्बात
https://youtube.com/playlist?list=PLmQxScIRXdajOmf4kBRhFM81T
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, आपको यह एहसास होता जाता है
ये मुनासिब नहीं हमारे लिए ,
*रामपुर रजा लाइब्रेरी की दरबार हॉल गैलरी : मृत्यु का बोध करा
डिफाल्टर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
लड़कियां बड़ी मासूम होती है,
■ सब परिवर्तनशील हैं। संगी-साथी भी।।
कुछ पन्ने मेरी जिंदगी के...। पेज न.2000
छन्द- सम वर्णिक छन्द " कीर्ति "