शुष्क दिवस
शुष्क दिवस
तुम सांसों की करो मालिश
दवाई छूट जाएगा।
मदिरा छूट जाएगा।
फिर न कोई पिलाएगा।
जीने की सच्ची राह तो पकड़ो,
शराबी छूट जाएगा।
तमाशा मिट जाएगा।
बड़ी उम्मीद से जाओ घर
कोई बेघर कर न पाएगा।
लानत है !तुझपे ऐ नशा
तूने सारंग बनकर डसा
लोगों की जान से खेला है
ये कब किसे है पता।
तू थोड़ा सुलाता है,
ज्यादा घुमाता है।
संकल्प लो शुष्क दिवस है आज
नशा को नहीं लगाना हाथ
संतों ने समझाया है।
और क्या चेताया है?
कि शुष्क दिवस रोज मनाना है।
मद्यपान को दूर भगाना है।
कविराज
संतोष कुमार मिरी
रायपुर छत्तीसगढ़।