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21 Sep 2024 · 1 min read

शुभांगी छंद

शुभांगी छंद

विरले मनुजा,इस लोक दिखें, जो अति उत्तम,निर्मल हैं।
अधिकांश यहाँ,दुख दानव हैं,पाप भरा मन,छल-बल है।

विकृत मानस,दूषित नस -नस,घोर विनाशक,हैं जग में।
विष नाग बने,चलते रहते,रक्तिम भावन,है रग में।

ईमान कहाँ,शैतान यहाँ,धन लोलुपता,गहरी है।
चोर-उचक्कों ,कूट दरिंदों,नीच-पतित की,नगरी है।

हिन्दी काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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