“शुद्ध प्रेम नहीं अगर, हृदयरूप द्वार पर”
अन्तरंग राग पर,
स्नेह की नाव पर,
प्रेम के दबाब पर,
लफ्ज़ के ख़्याल पर,
आशा की डोरी पर,
श्वांस के अन्तराल पर,
मूर्ख के आह्लाद पर,
स्वयं के उद्यम पर,
नज़र की परख पर,
रिश्तों में संशय पर,
छूटते सवाल पर,
समय के मलाल पर,
आधारहीन तथ्य पर,
मन्त्र की सिद्धि पर,
एक सवाल छोड़कर,
सभी तथ्यहीन हैं,
अग़र नहीं हृदय में,
नेह की कोठरी,
याद रख मनुष्य तू,
लाख प्रयत्न तू करे,
शत्रु से दलाल पर,
शुद्ध प्रेम नहीं अगर,
हृदयरूप द्वार पर।
©अभिषेक पाराशर????
“मेरी सौवीं रचना साहित्यपीडिया पर”