“शुक्र है, वो चली गई”⭐
“शुक्र है, वो चली गई”
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जाना तो है,सबको एक दिन;
सही समय पर वो चली गई।
शुक्र है, वो चली गई।
वो देख ना पाती, आज का खेला;
वैसे ही, जीवन में बहुत दुख झेला।
शुक्र है, वो चली गई।
मिलता क्या उसे, अगर वो होती;
सबके कष्ट देखकर दिन-रात रोती।
शुक्र है, वो चली गई।
जितना सुख-दुख पाना था, पाया उसने,
जीवन भर सबसे नेक रिश्ते, निभाया उसने।
शुक्र है, वो चली गई।
सुबह का उठना और रोज का मंदिर जाना,
समाज में सबके सुख-दुख में हाथ बटाना;
कैसे रह पाती वो, जरा कोई बताना।
रहने पर भी, वो भला क्या कुछ करती;
खुद कष्ट सहती और कुछ न कहती।
शुक्र है,वो चली गई।
अबके जिंदगी से, पड़ता सदा उसे रोना,
सुख से कभी रहने नही देता, उसे कोरोना।
शुक्र है, वो चली गई।
अपनी आयु तो, वो सारा थी जी चुकी;
उसके जाने से मैं हुआ, बहुत दुखी…..
……………
रोज शाम निहारती थीं, वो बाट मेरा;
चाहती थी सदा वो, साथ मेरा;
चली गई वो ,छोड़कर हाथ मेरा…
हाथ मेरा…………..
फिर भी; शुक्र है, वो चली गई।
…… ✍️ पंकज “कर्ण”
……………..कटिहार।