शुक्रिया कोरोना
शुक्रिया कोरोना
“कितना अच्छा लग रहा है आज घर में सबको एक साथ आराम से बैठकर देखते हुए।” लक्ष्मी ने कहा।
“हाँ लक्ष्मी, तू सही कह रही है। आज पहली बार हम चारों दिन के समय घर में एक साथ हैं, वरना तो तीज-त्योहारों में भी काम पर जाना पड़ता है।” नारायण पत्नी की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोला।
“सही कह रहे हैं बाबू जी। मुझे याद है आप उस दिन भी काम पर गए थे, जिस दिन छुटकू पैदा हुआ था।” रामू बोला।
“हाँ बेटा, क्या करें, पापी पेट जो न कराए, सो कम है। भले ही आज कोरोना वायरस ने संपूर्ण मानव जाति के समक्ष गंभीर चुनौती पेश कर दी है, परंतु इसी बहाने उसने हमें यह मौका भी तो दिया है कि हम कुछ पल अपनों के साथ बिता लें। प्रधानमंत्री जी के निर्देश पर अब मालिक तनखा नहीं काटेगा और तुम्हारी मम्मी को भी साहब जी ने पगार नहीं काटने का प्रॉमिस किया है, बल्कि उन्होंने तो छुट्टी के साथ-साथ घर खर्च के लिए कुछ रुपए एडवांस भी दे दिया है।” नारायण बोला।
“और हमारे मास्टर जी ने भी मेरे और छोटू के मध्याह्न भोजन का सूखा अनाज एक साथ दे दिया है।” रामू प्रफुल्लित मन से बोला।
आज छुटकू भी सबको एक साथ घर में देखकर बहुत खुश था।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़